
अल्लाह के बंदों के कंधों पर हरिओम की अर्थी…जुबां पर ‘राम नाम सत्य है’ के बोल गंगा जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल बने। लगभग दो साल पहले सांप्रदायिक दंगे का दंश झेल चुके कासगंज जिले में मुस्लिम समाज के लोगों ने कौमी एकता की मिसाल पेश की है। मुस्लिम बहुल गांव में इसी समाज के लोगों ने बुजुर्ग हरिओम की अर्थी को न सिर्फ कंधा दिया, बल्कि ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए शवयात्रा निकाली। इसके बाद हिंदू रीति-रिवाजों से बुजुर्ग का अंतिम संस्कार भी किया।
जिले के सहावर क्षेत्र के गांव गढ़का में 15 साल पहले हरिओम दर-दर भटकते हुए पहुंच गए थे। रेलवे स्टेशन पर वो दो वक्त की रोटी की जुगत में लगे थे। इसी दौरान गढ़का निवासी राशिद अली उन्हें अपने घर ले आए। हरिओम उन्हीं के साथ रहने लगे। एक साल पहले राशिद का इंतकाल हो गया। उसके बाद हरिओम राशिद के पोते ग्राम प्रधान उमरू खान और अन्य सदस्यों के साथ रह रहे थे।
शनिवार की सुबह 80 वर्षीय हरिओम की मौत हो गई। मौत के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिंदू रीति-रिवाज से उनके अंतिम संस्कार की तैयारी की। सहयोग के लिए गांव में रहने वाले हिंदू समाज के कुछ लोगों को बुलाया और फिर अर्थी बनाकर शवयात्रा निकाली। राम नाम सत्य है बोलते हुए मुस्लिम-हिंदू लोग श्मशान घाट पर पहुंचे। यहां हिंदू रीति-रिवाज से हरिओम का अंतिम संस्कार कर दिया। गंगा जमुनी तहजीब का यह समागम अनूठी मिसाल कायम कर गया।
जब शमशान घाट पर हरिओम की चिता बनाई गई तो फिर ग्राम प्रधान उमरू खान ने मुखाग्नि के लिए गांव में ही रहने वाले अपने दोस्त सत्यप्रकाश को आगे बढ़ाया। साथ ही हरिओम की शुद्धि और तेहरवीं संस्कार पूरे विध- विधान से करवाने की बात कही।
ग्राम प्रधान उमरू खान ने बताया कि 15 साल पहले मेरे दादा से हरिओम बाबा की मुलाकात रेलवे स्टेशन गढ़का पर हुई थी। उसके बाद से वो हमारे घर पर ही रहते थे। उनकी इच्छा थी कि मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से हो, इसलिए हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया।
गांव के राहत खान ने बताया कि कौमी एकता की यह मिसाल हमारे समाज के लिए एक बेहतर संदेश है। गांव मुस्लिम बहुल है। यहां कुछ परिवार ही हिंदुओं के रहते हैं। हरिओम बाबा पूरी तरह गांव में मुस्लिम समुदाय में घुल मिल गए थे। उनकी मौत के बाद अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया।