
- वर्ष 2002 शुरू हुआ विधानसभा चुुनाव में जीत का सिलसिला, चार बार से हैं विधायक
- साल 2017 में मोदी सुुनामी के विपरीत हासिल की जीत, भाजपा प्रत्याशी रहे दूसरे स्थान पर
कहते हैं सियासत और जिंदगी में कभी कुछ समान नहीं रहता है। आपका एक छोटा सा कदम कब आपको नफा से नुकसान करा देगा इस बारे में तो बड़े से बड़े सियासी पंडित का गणित फेल हो जाता है। ऐसा ही सियासी सफरनामा इन दिनों बेहद चर्चित यूपी और पूर्वांचल के बाहुबली ज्ञानपुर विधायक विजय मिश्र का है।
पड़ोसी जनपद प्रयागराज के खकटीहां गांव के निवासी और कारोबारी विधायक विजय मिश्र ने चुना पूर्वांचल के सर्वाधिक ब्राह्मण आबादी वाले जिलों मे से एक भदोही को। भदोही को अपनी राजनीति का केंद्र बनाने के पीछे बाहुबली विधायक विजय मिश्र की सोच ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की रही। जिसमें सफलता भी मिली। शुरुआत हुई सन 80 के दशक में जब ब्लॉक प्रमुख की किस्मत प्रधान तय किया करते थे।
भदोही जिले की ज्ञानपुर विधानसभा क्षेत्र के डीघ विकास खंड के प्रमुख की कुर्सी अभयराज सिंह के कब्जे मेें थी। 70 फीसद ब्राह्मण मतों वाले इस कुर्सी पर आखिर कैसे अभयराज सिंह लगातार दो बार काबिज हुए। इस चक्रव्यूह को समझा और तोड़ा जिले की राजनीति में पर्दापण कर चुुके विजय मिश्र ने।
फिर क्या था जातीय वोट बैंक को साधने के लिए मौके की तलाश शुरू हो गई। जल्द मौका भी मिल गया, जगह थी डीघ क्षेत्र की एक साधारण सी बाजार कोइरौना। यहां पर वर्ष 1986 में किसी बात पर क्षत्रियों के पक्ष में जो नारेबाजी हुई उसने विजय मिश्र को मुफीद मौका दे दिया।
पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी का विजय मिश्र को पहले से ही साथ था। बस फिर क्या था जिले के कांग्रेसी नेता रामश्रृंगार चौबे और वंशनारायण मिश्र ने विजय मिश्र को ब्लॉक प्रमुख पद का प्रत्याशी चुन लिया। दोनों नेताओं ने जैसे ही खुलेआम समर्थन किया, तो विजयश्री भी मिल गई।
फिर तो सियासत में शुरू हो गया फर्श से अर्श का सफर और ब्लॉक प्रमुख विजय मिश्र ने जिले के बहुसंख्यक ब्राह्मणों को अपना बनाने की मुहिम शुरू कर दी और शुरुआत में धुर क्षत्रिय विरोधी और कट्टर ब्राह्मण नेता की छवि अख्तियार की। हालांकि ये बात और है कि कारोबार और निजी जीवन में ये लागू नहीं किया।
शुरुआत में पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले, विकास पुरुष और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्यामधर मिश्र, भाजपा नेता व पूर्व सांंसद गोरखनाथ पांडेय आदि ने हर कदम पर विजय का साथ दिया और ब्राह्मण कार्ड खेला गया। कहते हैं सियासत में आपका कोई स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता। यही विजय मिश्र के साथ भी हुआ और सपा का दामन थामने के साथ ही पुुरानों का साथ छूटता गया और नए हमराह बन गए।
इन्हीं के बूते ज्ञानपुर सीट से वर्ष 2002, 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट से जीता। कहा तो ये भी जाता है कि सपा सरकार में मंत्री न होते हुए भी विजय मिश्र का रुतबा जिले में किसी मंत्री से कम नहीं रहा। फिर आया साल 2017 का विधानसभा चुनाव।
बाहुबली विधायक विजय मिश्र के लिए ये चुनाव चुनौतीभरा था, क्योंकि एक तरफ मोदी सुुनामी थी, तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की नाराजगी। हुआ भी वही सपा ने टिकट काट दिया, फिर भी 40 फीसद ब्राह्मण वोटरों के सहारे विजय मिश्र ने जीत का स्वाद चखा।
इसके बाद तो विजय मिश्र ने खुुद को ब्राह्मण राजनीति का चाणक्य मानकर पूर्वांचल के जौनपुर, गाजीपुर, वाराणसी सहित अन्य जिलों में ब्राह्मण एकता का नारा बुलंद किया। हालांकि हाल-फिलहाल उनका ये दांव तो काम नहीं आया, आगे देखते हैं।