अश्विन माह की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर रविवार को मनाई जाएगी।इसे रास पूर्णिमा भी कहा जात है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन कोजागर व्रत भी किया जाता है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा यानी अमृत की बारीश होती हैं। चंद्रमा सौलह कलाओं से पूर्ण होने के कारण इस रात चंद्रमा की रोशनी को पुष्टिवर्धक माना गया है।30 साल बाद शरद पूर्णिमा पर महालक्ष्मी और गजकेसरी योग बन रहा है। यह योग मां लक्ष्मी की कृपा के साथ सुख-समृद्धि वाला होगा। रविवार को बन रहा यह योग शरद ऋतु को लेकर आएगा। इस तिथि को अश्विन शुक्ल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाएगा।।
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा धरती के बहुत नजदीक होता है।। ऐसे में चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे धरती पर आकर गिरते हैं, जिससे इस रात रखे गये प्रसाद में चंद्रमा से निकले लवण व विटामिन जैसे पोषक तत्व समाहित हो जाते हैं।।विज्ञान कहता है कि दूध में लैक्टिक एसिड होता है।।यह किरणों से शक्ति का शोषण करता है।।चावल में मौजूद स्टार्च इस प्रक्रिया और आसान बनाता है।। ये स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है।।ऐसे में इस प्रसाद को दूसरे दिन खाली पेट ग्रहण करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।। सांस संबंधी बीमारियों में लाभ मिलता है।। मानसिक परेशानियां दूर होती हैं.।।