
विज्ञान के विकास के साथ-साथ संचार प्रणाली का भी बहुत विकास हो चुका है। आज टेक्नोलॉजी की मदद से अज्ञात स्थानों से लेकर चाँद और मंगल ग्रह पर मानव जाति बसने बारे में सोच रही है। इतनी तकनीकी प्रगति के बावजूद आज भी दुनिया में कुछ ऐसी सभ्यताएं हैं, जिनका आधुनिक सभ्यता से कोई लेना-देना नहीं है।
यह कुछ ऐसी जनजाति हैं जो हमारी दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग रहती हैं। आज हम ऐसी ही कुछ आदिवासी जनजातियों के बारे में जानेंगे, जो बाकी दुनिया से कटी हुई हैं। इनमें से कुछ प्रजातियां तो अभी भी हमारी सभ्यता के बारे में शायद ही जानती हैं। साथ ही कुछ ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो अपने क्षेत्र में हम इंसानों के दखलंदाजी बिल्कुल मंजूर नहीं करती हैं। कौन हैं वो प्रजातियां, आइए उनके बारे में जानते हैं-
सेंटिनेल जनजाति, अंडमान द्वीप
आज भी सेंटिनल द्वीप पर 60 हजार साल पुराना इंसानी कबीला रहता है। इस कबीले का बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं है। इस कबीले के लोग उनके क्षेत्र में दाखिल होने वाले लोगों हमला भी करता है। हिंद महासागर में अंडमान द्वीप के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर सिर्फ नाव के जरिए पहुंचा जा सकता है। इस जनजाति के लोग ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को खुद से संपर्क रखने देते हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक सेंटिनेल जनजाति ने करीब 60 हज़ार साल पहले अफ़्रीका से अंडमान में पलायन किया था। फिलहाल इनकी आबादी काफी कम हो गई है।
साल 2017 में भारत सरकार ने इन जनजातियों की तस्वीरें लेना या वीडियो बनाने को ग़ैरक़ानूनी करार दे दिया था। इसके उल्लंघन पर तीन साल क़ैद की सजा तक हो सकती है।
यह एक प्रतिबंधित इलाका है जहां आम इंसानों की एंट्री पर बैन लगा हुआ है। माना जाता है कि साल 2004 में आई सुनामी में भी यह जनजाति बचने में कामयाब रही थी।
उस दौरान, अंडमान में नेवी का एक हेलिकॉप्टर उत्तरी सेंटिनेल इलाक़े में दौरा कर रहा था और जैसे ही उनका हेलिकॉप्टर थोड़ा नीचे की तरफ उतरने लगा तो इस जनजाति के लोगों ने हेलिकॉप्टर पर तीरों से हमला करना शुरू कर दिया था।
इस हमले के बाद ही उनके सुरक्षित होने का पता चला था। इनके बारे में ये भी कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में जब इस जनजाति का संपर्क ग्रेट अंडमानियों से हुआ था तब सारा समुदाय बीमारी के कारण ख़त्म हो गया था, क्योंकि इनकी प्रतिरोधक क्षमता हमारी तरह नहीं हो पायी है। लिहाजा, हमारे संपर्क में आने से इन्हें बीमारियां हो जाने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
इसके अलावा, इस द्वीप पर जारवा जनजाति भी बसती है, जो बाहरी लोगों के प्रवेश पर उनपर तीर चलकर हमला करती है। ऐसे कई केस देखने को मिले हैं जब इन जनजातियों पर लोगों की हत्या के आरोप लगे हैं। बीते कुछ महीनों में यह जनजाति काफी चर्चा में आई थी।
‘कोरोवाई’ जनजाति, पापुआ न्यू गिनी
दक्षिण प्रशांत में स्थित पापुआ न्यू गिनी के जंगलों में रहने वाले आदिवासी भी बाकी दुनिया से अलग रहते हैं। या प्रजाति ‘कोरोवाई’ या ‘फोर पीपुल्स’ के नाम से भी जानी जाती है। इनकी खोज एक डच मिशनरी ने की थी, इससे पहले इनके अस्तित्व के बारे में दुनिया को कोई खबर नहीं थी।
यह रहस्यमय जनजाति के लोगों का बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं है। इनके रहन-सहन की वजह से इस जनजाति के लोगों का बाकी जनजातियों से हिंसक झगड़ा होता रहता है।
कोरोवाई लोग भूमि अधिकार-वन अधिकार के लिए खूनी युद्ध से भी नहीं कतराते हैं। कहते हैं ये लोग क्ररूता से एक-दूसरे पर वार करते हैं और अपने दुश्मनों का सिर काटकर उनका दिमाग या मस्तिष्क निकालकर खा लेते हैं। इस जनजाति के लोग दुश्मनों के मतिष्क से बने भोजन को ‘ओमनासटस’ कहते हैं जिसे वह दुश्मन की हार और अपनी जीत के तौर पर पकाते हैं।
1974 में इनकी खोज के बाद काफी लोगों ने यहाँ आना शुरू कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद ये लोग बाहरी दुनिया से संपर्क रखना पसंद नहीं करते हैं।
कोरोवाई लोग जमीन से 6 से 12 मीटर ऊंचाई पर पेड़ों पर बने घरों में रहते हैं। ऊँचाई पर रहने के पीछे इनका मकसद बाहरी आक्रमण और बुरी आत्माओं से बचने का होता है।
ये लोग जीवनयापन करने के लिए शिकार करते हैं और बताया जाता है कि ये मछली पकड़ने में माहिर होते हैं। माना जाता है कि इस जनजाति के लोग बहुत अंधविश्वासी होते हैं।
सूरमा जनजाति, सूडान / इथियोपिया
दक्षिण सूडान और दक्षिण-पश्चिम इथियोपिया सूरमा जनजाति के लोग रहते हैं। ये लोग भी दुनिया से कोई संपर्क रखना पसंद नहीं करते हैं। ये लोग अपनी अजीब शारीरिक विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं। इन में और अन्य अलग-थलग लोगों में एक अंतर है। दरअसल, ये लोग आधुनिक हथियारों का उपयोग करते हैं। इनके पास एके -47 जैसे आधुनिक हथियार होते हैं।
इस जनजाति का मुख्य काम जानवर चराना है। इस जनजाति में जिसके पास जितने ज्यादा जानवर वह उतना ज्यादा अमीर कहलाता है। ये लोग मानते हैं कि जिंदा जानवरों का खून पीने से उनकी ताकत बढ़ती है। लिहाजा, इए लोग महीने में एक बार जानवरों का खून पिते हैं।