
वाराणसी। धर्म की नगरी काशी के लिए एक कहावत है कि यहां के कड़ कड़ में शंकर और घर-घऱ में मंदिर हैं। ऐसा ही कुछ विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण कार्य के दौरान देखने को मिला। अब फिर से वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गुरुवार को खुदाई के दौरान लगभग 7 फीट नीचे एक शिवलिंग का विग्रह मिला है। विग्रह उल्टी दिशा में है और विग्रह का लिंग मिट्टी के अंदर दबा हुआ है, फिलहाल शिवलिंग मिलने के बाद खुदाई का काम रोक दिया गया है। क्षेत्रीय नागरिकों का कहना है कि यह शिवलिंग सैकड़ों वर्ष पुराना है।
वाराणसी में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत घाटों के सुंदरीकरण का कार्य प्रगति पर है, जिसके अंतर्गत अलग-अलग घाटों पर एलइडी स्क्रीन लाइट्स व अन्य विकास कार्य के लिए खुदाई की जा रही है। इसी क्रम में दशाश्वमेध घाट पर भी सुंदरीकरण का कार्य चल रहा है, इसके लिए मजदूर घाट पर खुदाई कर रहे थें कि तभी दशाश्वमेध घाट के जल पुलिस चौकी के नीचे लगभग 7 फीट खुदाई के बाद एक शिवलिंग का विग्रह मिल गया, जिसके बाद इसे निकालने की कोशिश की गई लेकिन शिवलिंग नहीं निकला। अंत में मजदूरों ने खुदाई रोक दी और आला अधिकारियों को इसकी सूचना दी।
दूर-दूर से शिवलिंग देखने पहुंच रहे लोग-
खुदाई के दौरान मिलें शिवलिंग को लेकर लोग तरह तरह की चर्चा कर रहे हैं। कुछ लोग इस शिवलिंग को सैकड़ों वर्ष पुराना बात रहे हैं। इस सम्बंध में नगर आयुक्त गौरांग राठी ने जानकारी दी कि खुदाई का काम रोक दिया गया है और मिलें शिवलिंग की जानकारी करने के लिए पुरातात्विक टीम को बुलाया गया है। शिवलिंग मिलने के बाद क्षेत्र में यह कौतूहल का विषय बना हुआ है। शिवलिंग के मिलने का पता चलते ही लोग दूर-दूर से आकर इसे देख रहे हैं।
दशाश्वमेध घाट की मान्यता
पुरोहितों और विद्वानों के अनुसार जिस घाट पर ये शिवलिंग मिला है वो घाट कभी देवी देवताओं की तपोभूमि हुआ करती थी। मान्यता है कि इस घाट पर स्वयं ब्रम्हा जी ने दस बार अश्वमेध यज्ञ किया था, जिसके कारण इस घाट का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। जहां पर ये विशाल शिवलिंग मिला है, उस जगह पर यज्ञ कुंड हुआ करता था और उसके पास वाले घाट पर वेद मंडप हुआ करता था।
वहीं डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल का अनुमान है कि दूसरी शताब्दी में प्रसिद्ध भारशिव राजाओं ने कुषाणों को परास्त कर दस अश्वमेध यज्ञ करने के पश्चात यहीं पर स्नान किया था तभी से इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। सन् 1735 में घाट का निर्माण बाजीराव पेशवा ने कराया था। पूर्व में इस घाट का विस्तार वर्तमान अहिल्याबाई घाट से लेकर राजेन्द्रप्रसाद घाट तक था। सन् 1929 में यहाँ रानी पुटिया के मंदिर के नीचे खोदाई में अनेक यज्ञकुंड निकले थे। बतां दे कि विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण कार्य के दौरान भी खुदाई के दौरान कई प्राचीन शिवलिंग मिले हैं, जिनकी पुरातात्विक विभाग जांच भी कर रही है।